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March 17, 2024

श्री गोविन्द दामोदर स्तोत्रम- Shri Govind Damodar Stotram

                                                             करार विन्दे न पदार विन्दम् ,
मुखार विन्दे विनिवेश यन्तम् । 
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम् ,
बालम् मुकुंदम् मनसा स्मरामि ॥ १ ॥ 

 कमल के समान कोमल पैरो को, कमल के समान हस्त से पकड़कर, अपने कमलरूपी मुख में धारण किया है, वट वृक्ष के पत्तो पर विश्राम करते हुए, मैं उस बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं ॥ १ ॥ 
Who by His lotus-hands, is putting His lotus-feet in His lotus-mouth, Who sleeps on Banyan leaf that infant Mukunda my mind remembers

हे कृष्ण हे यादव हे सखेति
गोविन्द दामोदर माधवेति ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
     गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २ ॥ 

हे नाथ, मेरी जिव्हा सदैव केवल आपके विभिन्न नामो (कृष्ण, गोविन्द, दामोदर, माधव ....) का अमृतमय रसपान करती रहे ॥ २ ॥  

Shri Krishna govinda  jihve pibasvamritam etad eva govinda damodara madhaveti “Shri Krishna! Govinda! Sakheti!”
 O tongue, please drink only this nectar–”Govinda, Damodara, Madhava!

विक्रेतु कामा किल गोप कन्या,
मुरारि - पदार्पित - चित्त - वृति ।
दध्यादिकम् मोहवसाद वोचद्,
 गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३  ॥ 

गोपिकाये, दूध, दही, माखन बेचने की इच्छा से घर से चली तो है, किन्तु उनका चित्त बालमुकुन्द (मुरारि) के चरणारविन्द में इस प्रकार समर्पित हो गया है कि, प्रेम वश अपनी सुध - बुध भूलकर "दही  लो दही" के स्थान पर जोर - जोर से गोविन्द, दामोदर, माधव आदि पुकारने लगी है ॥ ३ ॥
Though desiring to sell milk, dahi, butter, etc., the mind of a young gopi was so absorbed in the lotus feet of Krishna that instead of calling out “Milk for sale,” she bewilderedly said, “Govinda!”, Damodara!”, and “Madhava!”


घृहे - घृहे गोप वधु कदम्बा,
सर्वे मिलित्व समवाप्य योगम् ।
पुण्यानी नामानि पठन्ति नित्यम्,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४ ॥ 

घर - घर में गोपिकाएँ विभिन्न अवसरों पर एकत्र होकर, एक साथ मिलकर, सदैव इसी उत्तमौतम, पुण्यमय, श्री कृष्ण के नाम का स्मरण करती है, गोविन्द, दामोदर, माधव .... ॥ ४ ॥
In house after house, groups of cowherd ladies gather on various occasions, and together they always chant the transcendental names of Krishna–”Govinda, Damodara, and Madhava.”


सुखम् शयाना निलये निजेपि,
नामानि विष्णो प्रवदन्ति मर्त्याः ।
ते निचितम् तनमय - ताम व्रजन्ति,
गोविन्द दामोदर माधवेति  ॥ ५ ॥

साधारण मनुष्य अपने घर पर आराम करते हुए भी, भगवान श्री कृष्ण के इन नामो, गोविन्द, दामोदर, माधव का स्मरण करता है, वह निश्चित रूप से ही, भगवान के स्वरुप को प्राप्त होता है ॥ ५ ॥
Even the ordinary mortals comfortably seated at home who chant the names of Vishnu, “Govinda, Damodara,” and “Madhava,” certainly attain (at least) the liberation of having a form similar to that of the Lord.


जिव्हे सदैवम् भज सुंदरानी, 
नामानि कृष्णस्य मनोहरानी । 
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि,
गोविन्द दामोदर माधवेति  ॥ ६ ॥

है जिव्हा, तू भगवान श्री कृष्ण के सुन्दर और मनोहर इन्ही नामो, गोविन्द, दामोदर, माधव का स्मरण कर, जो भक्तो की समस्त बाधाओं का नाश करने वाले है ॥ ६ ॥ 
O my tongue, just always worship these beautiful, enchanting names of Krishna, “Govinda, Damodara,” and “Madhava,” which destroy all the obstacles of the devotees.


सुखावसाने तु इदमेव सारम्,
दुःखावसाने तु इद्मेव गेयम् । 
देहावसाने तु इदमेव जाप्यं,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ७ ॥ 

सुख के अन्त में यही सार है, दुःख के अन्त में यही गाने योग्य है, और शरीर का अन्त होने के समय यही जपने योग्य है, हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ॥ ७ ॥
This indeed is the essence (found) upon ceasing the affairs of mundane happiness. And this too is to be sung after the cessation of all sufferings. This alone is to be chanted at the time of death of one’s material body–”Govinda, Damodara, Madhava



श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश,
गोपाल गोवर्धन - नाथ विष्णो ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ८ ॥

हे जिव्हा तू इन्ही अमृतमय नमो का रसपान कर, श्री कृष्ण , अतिप्रिय राधारानी, गोकुल के स्वामी गोपाल, गोवर्धननाथ,  श्री विष्णु, गोविन्द, दामोदर, और माधव ॥ ८ ॥
O tongue, drink only this nectar (of the names), “Shri Krishna, dearmost of Shrimati Radharani, Lord of Gokula, Gopala, Lord of Govardhana, Vishnu, Govinda, Damodara,” and “Madhava.”



जिव्हे रसज्ञे मधुर - प्रियात्वं,
सत्यम हितम् त्वां परं वदामि ।
आवर्णयेता मधुराक्षराणि,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ९ ॥

हे जिव्हा, तुझे विभिन्न प्रकार के मिष्ठान प्रिय है, जो कि स्वाद में भिन्न - भिन्न है। मैं तुझे एक परम् सत्य कहता हूँ, जो की तेरे परम हित में है। केवल प्रभु के इन्ही मधुर (मीठे) , अमृतमय नमो का रसास्वादन कर, गोविन्द , दामोदर , माधव ..... ॥ ९ ॥



त्वामेव याचे मम देहि जिव्हे,
समागते दण्ड - धरे कृतान्ते ।
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या ,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १० ॥

हे जिव्हे, मेरी तुझसे यही प्रार्थना है, जब यमराज मुझे लेने आये , उस समय सम्पूर्ण समर्पण से इन्ही मधुर नमो को लेना , गोविन्द , दामोदर , माधव ॥ १० ॥
O my tongue, I ask only this of you, that at my meeting the bearer of the sceptre of chastisement (Yamaraja), you will utter this sweet phrase with great devotion: “Govinda, Damodara, Madhava!”


श्री नाथ विश्वेश्वर विश्व मूर्ते,
श्री देवकी - नन्दन दैत्य - शत्रो ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ११ ॥

हे प्रभु , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी , विश्व के स्वरुप , देवकी नन्दन , दैत्यों के शत्रु , मेरी जिव्हा सदैव आपके अमृतमय नमो गोविन्द , दामोदर , माधव का रसपान करती है ॥ ११ ॥
“Shrinatha, Lord of the universe, form of the universe, beautiful son of Devaki, O enemy of the demons, Govinda, Damodara, Madhava!” O my tongue, just drink this nectar.

Brilliantly sung by Amrendra Prabhu Ji
https://www.youtube.com/shorts/A9wnpgNDaPo