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October 31, 2017

Shri Ram Chandar Kripalu Lyrics



श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं,
नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं.
O mind! Revere the benign Shri Ramachandra, who removes 'Bhava' the worldly sorrow or pain, 'Bhaya' the fear, and 'Daruna' the scarcity or poverty.
Who has fresh lotus eyes, lotus face and lotus hands, feet like lotus and like the rising sun.
हे मन कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण भय को दूर करने वाले हैं उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं

कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरज सुन्दरम,
पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची नौमी, जनक सुतावरं.
His image exceeds myriad Kamadevas, like a fresh, blue-hued cloud — magnificent.
His amber-robes appear like lightning, pure, captivating. Revere this groom of Janaka’s daughter.
उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ.

भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंष निकन्दनं,
रघुनंद आनंद कंद कोशल चन्द्र दशरथ नंदनम.
Sing hymns of the brother of destitutes, Lord of the daylight, the destroyer of the clan of Danu-Diti demons.
The progeny of Raghu, limitless 'joy', the moon to Koshala, sing hymns of Dasharatha’s son.
हे मन ,दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यों के वंश का समूल नाश करने वाले, आनन्दकन्द कोशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चन्द्रमा के समान दशरथनन्दन श्रीराम का भजन कर.

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुशनम,
आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं.
His head bears the crown, ear pendants, tilaka on forehead, his adorned, shapely limbs are resplendent.
Arms extend to the knees, studded with bows-arrows, who won battles against Khara and Dushana.
जिनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट, कानों में कुण्डल भाल पर तिलक, और प्रत्येक अंग मे सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं जो धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होनें संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है.


इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि-मन-रंजनं,
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं.
Thus says Tulsidas, O joy of Shankara, Shesha and other Sages.
Reside in the lotus of my heart, O slayer of the vices-troops of Kama and the likes.
जो शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं का नाश करने वाले हैं, तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे हृदय कमल में सदा निवास करें

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