Q: ये शिव रात्रि पर जो तुम इतना दूध चढाते हो शिवलिंग पर, इससे
अच्छा तो ये हो कि ये दूध जो बहकर नालियों में बर्बाद हो जाता है, उसकी
बजाए गरीबों मे बाँट दिया जाना चाहिए। तुम्हारे शिव जी से ज्यादा उस दूध की
जरुरत देश के गरीब लोगों को है। दूध बर्बाद करने की ये कैसी आस्था है ?
A : आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और फाल्गुन के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं। फाल्गुन के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है। इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ?
ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिए।
और उस समय पशु क्या खाते हैं ?
Q: क्या ?
A : सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं। इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि फाल्गुन के महीने में (जब शिवरात्रि होती है) दूध नहीं पीना चाहिए, इसलिए फाल्गुन मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे।
इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था।
A : आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और फाल्गुन के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं। फाल्गुन के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है। इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ?
ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिए।
और उस समय पशु क्या खाते हैं ?
Q: क्या ?
A : सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं। इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि फाल्गुन के महीने में (जब शिवरात्रि होती है) दूध नहीं पीना चाहिए, इसलिए फाल्गुन मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे।
इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था।
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